Thursday, June 3, 2010

बारिश

द्वंद्व खेलते काले घने बादलो से शुरू होती
गरजती, असीम आकाश के प्रचंड रूप का प्रचार करती
टप्प टप्प गिरती ठंडी बूंदों से, मासूम हंसी सी
ह्रदय के द्वार पे दस्तक देती है ये बारिश |

पेड़ों पे जमी हुई धुल को उड़ाती
मानो बेजान इंसान को झंझोद्ती
हवा में सरसराते पत्तो से सिमटकर
उनको फिर से हरा कर देती है ये बारिश |

स्वयं को नष्ट कर देने की चाह लिए
अविरत गिरते ये बूंदों के मोती
धरती की रगों में खून की तरह मिलकर
नए जीवन के आरम्भ का एलान करती है ये बारिश |

कभी तो प्रियतमा से दूर अकेले प्रेमी को
बेचैन बनाती, विवश करती, तडपाती,
तो कभी दुनिया की भागदौड़ में भटके इंसान को
अपने आप ही से मिला देती है ये बारिश |||

2 comments:

  1. How romantic :P..
    but this Baris has given me cold+headache.. it's troubling me today..

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  2. Good verses..
    Way to go, buddy !!

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